...दोस्तों के साथ वक़्त बिताये एक ज़माना हो गया था.... हैदराबाद से दिल्ली फिर वहाँ से अपने प्रोजेक्ट वर्क को निपटा कर हम कुल्लू मनाली की ओर निकल पड़े.... पहाड़ों से मेरा बहुत लगाव रहा है और अपने इंजीनियरिंग के दौरान मेरे समय का एक बड़ा हिस्सा इन्ही हिमालय की वादियों में गुज़रा. अपने प्रकृति प्रेम का आगाज़ करने हम फिर से निकल पड़े थे....चंडीगढ़ फिर शिमला बाई पास फिर कुल्लू और मनाली और उसके आगे रोहतांग का दुर्गम रास्ता जो सीधे भारत-चीन सीमा तक पहुचता है..वो सौंधी सौंधी खुशबू फिर से मेरे ज़ेहन को झकझोरने लगी थी.... जी तो किया की इन्ही वादियों में बैठ कर कोई ग़ज़ल लिखी जाये पर और दोस्तों को बोर नहीं करना चाहता था. सो हमने मनाली पहुच कर एक कॉटेज इन्ही वादियों के बीच ले लिया और फिर यहाँ की खूबसूरती को निहारने निकल पड़े.
गोरे लोग, छोटी छोटी आँखें, शरीर गठीला पर कद काठी उतनी ही छोटी, अलग बोली, विशाल हिमालय, दिल दहला देने वाली उचाइयां और दर्दनाक खाइयाँ, चोटियों पर फसे हिम के अंश, आसमान को चढ़ते रास्ते, अल्हड़ नदियाँ, सेव के बाग़, बड़े दिल वाले लोग, पहाड़ कि ढालों पर घूमते मवेशी और सर्पनुमा रास्ते अपनी दास्ताँ खुद ही बयां कर रहे थे.... जब घर की छतों को छूते बादल कभी कभी कमरे की खिड़की से अन्दर की तरफ झाँकने लगते तो दिल अपने आप बोल उठता कि यही स्वर्ग है....
अगली सुबह हम रोहतांग कि तरफ निकल चले....बर्फीले रास्तों की वज़ह से गाड़ी की टायरों में ग्रिप चेन बंधवानी पड़ी ताकि बर्फ पर वो फिसले नहीं....वहाँ पहुचते ही पारा ग्लाइडिंग, स्कीइंग, फाइरिंग और माउन्टेन रोवर की ड्राइव का लुफ्त उठाया....बर्फ की एक सफ़ेद चादर ओढ़े वो पहाड़ियां किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थीं..
कुल मिला कर समय बड़ा खुशनुमा बीता और मैं इन वादियों की कशिश अपने ज़ेहन में लिए वापस हैदराबाद आ गया..लेकिन पुनः जब भी वक़्त मिलेगा ये मन तो इनकी ओर ही निकलना चाहेगा ....
You are a virtual personality.
ReplyDeleteNa jane q main aapki khoobion se anjaan tha.
ReplyDeleteYou are really great Mr. writer..nice article.
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