कुछ पन्ने बड़े पुराने,
आज अचानक हाथ लगे,
तासीर आज भी ताजी थी,
बचपन में लिखे उन गीतों की,
गलतियाँ बड़ी निकली उनमें,
स्वाद और भी पाया उनमें।
तब के ख़ुद पर इतना ,
ज़ोर ज़ोर से हसना आया,
ख़ुद की गलती का सुधारक,
एक उम्र बाद जो बन आया,
नन्हे मन की परख भी देखी,
भींगी आँखें नही थी सूखी।
उल्लास पूरित मन एक पाया,
जब मैंने वो गाना गाया,
सुर उसके आज भी याद थे,
हाथों ने बरबस ताल भी ठोका,
महफ़िल सजी बिन लोगों के,
ख़ुद को कौन है देता धोखा।
विषय बड़ा दिलचस्प था निकला,
भूत में जिसने मुझको धकेला,
परत डर परत उधेरती गई,
छोटी छोटी यादों की कलि,
आदे तिरछे लिखा था सब कुछ,
हाँ! लिखावट पहले से सुधर गई.
आज अचानक हाथ लगे,
तासीर आज भी ताजी थी,
बचपन में लिखे उन गीतों की,
गलतियाँ बड़ी निकली उनमें,
स्वाद और भी पाया उनमें।
तब के ख़ुद पर इतना ,
ज़ोर ज़ोर से हसना आया,
ख़ुद की गलती का सुधारक,
एक उम्र बाद जो बन आया,
नन्हे मन की परख भी देखी,
भींगी आँखें नही थी सूखी।
उल्लास पूरित मन एक पाया,
जब मैंने वो गाना गाया,
सुर उसके आज भी याद थे,
हाथों ने बरबस ताल भी ठोका,
महफ़िल सजी बिन लोगों के,
ख़ुद को कौन है देता धोखा।
विषय बड़ा दिलचस्प था निकला,
भूत में जिसने मुझको धकेला,
परत डर परत उधेरती गई,
छोटी छोटी यादों की कलि,
आदे तिरछे लिखा था सब कुछ,
हाँ! लिखावट पहले से सुधर गई.