जनवरी की वो श्वेत सर्दी,
और सफ़र जो ताज महल का,इक चादर में कुकड़े बैठे ,
हाथों में हाथ लिए सजन का.
वो सर्द रात की सर्द चांदनी,
श्वेत कुहासे को छू कर,
श्वेत श्वेत सी दुधिया फैली,
खुद जैसी बाहों में ले कर.
सफ़ेद चादर की ओढ़नी में,
धरती दामन थामे बैठी,
घूँघट के अन्दर फसलों सी,
मुस्काए सूरत पे बैठी.
शरद ऋतू ये शांत ऋतु,
स्नेह की ज्वाला क्रांत ऋतु,
चादर के दरम्यान भी अपने,
चंचल चपल और कान्त ऋतु.
सांसों की सांसों से गर्मी,
रातों की रातों से शर्मी,
मधुर मिलन और वृन्द अगन,
स्पर्शों से स्पर्शों की नर्मी.