कुल पांच साल पहले देखा हुआ एक सपना तब पूरा हुआ जब मेरी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई, उसकी पहली प्रति मेरे हाथों में आई और फ़िर उसका विमोचन कॉलेज कैम्पस में संपन्न हुआ....सपना ही था शायद.. पर इसके पीछे मेरी एक लम्बी तपस्या शामिल थी ।
इससे जुडा एक बड़ा तजुर्बा आपसे बाँटना चाहूँगा.... बात उस वक्त की है जब मैं अपनी रचनाएँ ले कर दिल्ली के एक बड़े प्रकाशक के यहाँ पंहुचा हुआ था, वहीँ एक समृद्ध लेखक बन्धु भी मौजूद थे। प्रकाशक बाज़ार की अस्थिरता को देखते हुए पुस्तक में पैसा लगाने को राजी नही हो रहे थे। तभी लेखक बन्धु जो मुझसे करीब तिगुनी उम्र के थे, मुझे समझाते हुए कहा था-"ऐसा है! तुम क्यों पुस्तक प्रकाशित कराने के चक्कर में लगे हो? बहुत कठिन प्रक्रिया है,बहुत पैसा लगाना पड़ता है, जूते तक घिस जाते हैं।"
थोडी देर भूमिका बांधने के बाद वे बोले- "एक काम करो ढाई-तीन लाख ले लो और भूल जाओ की तुम्हारे पास कुछ था। "मैं बहुत हैरान हुआ की सालों की तपस्या का यही नतीजा था! अपने आप को कुछ साबित करने की
जद्दो-जेहद में जुटे एक इंसान को दुनिया किस कदर नीचा दिखा सकती है, ये लेखक के लगाए हुए कौडियों के मोल से स्पस्ट हो गया।
ख़ुद अकेले बिना किसी अनुभव के ये सब कुछ करने निकल पड़ना मुझे जीवन का कितना बड़ा अनुभव दे गया। बिना सोचे किंतु एक प्रखर मुद्रा में मैंने उनको ज़वाब दिया-" मैं फिलहाल एक छात्र हूँ, जो थोडी बहुत आवश्यकताएं होती हैं वो घरवाले पूरा कर देते हैं। अभी मुझे पैसे की भूख नही है, भूख तो किसी और ही चीज़ की है। वो भूख मुझे मिटा लेने दीजिये।
और आज इस मंच से संबोधित करते हुए बड़े रोआब में कह सकता हूँ की जिस चीज़ की भूख थी मुझे, उसे अपने जबड़ों के बीच रख कर बड़े शान से चबा रहा हूँ। ऐसा कहने में मुझे ज़रा भी संकोच नही है.... ।
इससे जुडा एक बड़ा तजुर्बा आपसे बाँटना चाहूँगा.... बात उस वक्त की है जब मैं अपनी रचनाएँ ले कर दिल्ली के एक बड़े प्रकाशक के यहाँ पंहुचा हुआ था, वहीँ एक समृद्ध लेखक बन्धु भी मौजूद थे। प्रकाशक बाज़ार की अस्थिरता को देखते हुए पुस्तक में पैसा लगाने को राजी नही हो रहे थे। तभी लेखक बन्धु जो मुझसे करीब तिगुनी उम्र के थे, मुझे समझाते हुए कहा था-"ऐसा है! तुम क्यों पुस्तक प्रकाशित कराने के चक्कर में लगे हो? बहुत कठिन प्रक्रिया है,बहुत पैसा लगाना पड़ता है, जूते तक घिस जाते हैं।"
थोडी देर भूमिका बांधने के बाद वे बोले- "एक काम करो ढाई-तीन लाख ले लो और भूल जाओ की तुम्हारे पास कुछ था। "मैं बहुत हैरान हुआ की सालों की तपस्या का यही नतीजा था! अपने आप को कुछ साबित करने की
जद्दो-जेहद में जुटे एक इंसान को दुनिया किस कदर नीचा दिखा सकती है, ये लेखक के लगाए हुए कौडियों के मोल से स्पस्ट हो गया।
ख़ुद अकेले बिना किसी अनुभव के ये सब कुछ करने निकल पड़ना मुझे जीवन का कितना बड़ा अनुभव दे गया। बिना सोचे किंतु एक प्रखर मुद्रा में मैंने उनको ज़वाब दिया-" मैं फिलहाल एक छात्र हूँ, जो थोडी बहुत आवश्यकताएं होती हैं वो घरवाले पूरा कर देते हैं। अभी मुझे पैसे की भूख नही है, भूख तो किसी और ही चीज़ की है। वो भूख मुझे मिटा लेने दीजिये।
और आज इस मंच से संबोधित करते हुए बड़े रोआब में कह सकता हूँ की जिस चीज़ की भूख थी मुझे, उसे अपने जबड़ों के बीच रख कर बड़े शान से चबा रहा हूँ। ऐसा कहने में मुझे ज़रा भी संकोच नही है.... ।
how much strugling times are they which nurtured a healthy and a creative book....It has appreciable thaughts....
ReplyDeletealtimately you have got the success. hope your all dreams comes true............
ReplyDeletevisit on my blog ...........
http://halchalekit.blogspot.com
"अभी मुझे पैसे की भूख नही है, भूख तो किसी और ही चीज़ की है। वो भूख मुझे मिटा लेने दीजिये। "
ReplyDeletekya jawab diya hai.........wah!!!
http://rajdarbaar.blogspot.com/