Monday, June 23, 2008

वजूद.


कौन हूँ मैं,मैं हूँ किसका,
ठौर ठिकाना पता न जिसका,
किस डगर पर,किस मंजिल का,
इस गर्दिश में अश्क है किसका।

हूँ किस किस की सोच,
कहाँ मेरा साया है जाता,
मैं औरों को कहा जानू,
ख़ुद को भी कैसे पाता?


दूर कहाँ देखा करता हूँ,
कौन वहाँ दिखता है मुझको,
वजूद बयां भी है क्या उसका,
क्यूँ धुंधला सा दिखता मुझको?


राह कठिन है दूर चला चल,
क्यूँ थक सा तू जाता है,
मंजिल भी पीछे दौड़ पड़ेगी,
देखें कब रहें नई बनाता है?

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